चलो, आज अपने रिश्तों के बीच आयें, सारी खटास मिटाते | हिंदी Poetry

"चलो, आज अपने रिश्तों के बीच आयें, सारी खटास मिटाते हैं, थोड़ा प्रेम तुम बरसाना, थोड़ा हम बरसातें हैं, रिश्ते में थोड़ी मिठास लाते हैं... कल जो होना है होगा हीं, कम से कम आज को जी जाते हैं, सुना है त्योहार आया है फिर से अपना, इसीलिए थोड़ा खुश होकर- दीवाली साथ में मनाते हैं... जो भी बचे हैं समान सजावट के, चलो चलकर साथ ले आते हैं, पूजन भी तो है आज अपने घर, चलो सारी नाराजगी मिटाते हैं... सुनो, तुम रंगोली बनाना हम छत को सजाते हैं, चल फिर साथ चलकर प्रेम का, एक दीपक तुम एक हम भी जलाते हैं... ........... ©अपनी कलम से"

 चलो,
आज अपने रिश्तों के बीच आयें,
सारी खटास मिटाते हैं,
थोड़ा प्रेम तुम बरसाना,
थोड़ा हम बरसातें हैं,
रिश्ते में थोड़ी मिठास लाते हैं...
कल जो होना है होगा हीं,
कम से कम आज को जी जाते हैं,
सुना है त्योहार आया है फिर से अपना,
इसीलिए थोड़ा खुश होकर-
दीवाली साथ में मनाते हैं...
जो भी बचे हैं समान सजावट के,
चलो चलकर साथ ले आते हैं,
पूजन भी तो है आज अपने घर,
चलो सारी नाराजगी मिटाते हैं... 

सुनो,
तुम रंगोली बनाना हम छत को सजाते हैं,
चल फिर साथ चलकर प्रेम का,
एक दीपक तुम एक हम भी जलाते हैं...

...........

©अपनी कलम से

चलो, आज अपने रिश्तों के बीच आयें, सारी खटास मिटाते हैं, थोड़ा प्रेम तुम बरसाना, थोड़ा हम बरसातें हैं, रिश्ते में थोड़ी मिठास लाते हैं... कल जो होना है होगा हीं, कम से कम आज को जी जाते हैं, सुना है त्योहार आया है फिर से अपना, इसीलिए थोड़ा खुश होकर- दीवाली साथ में मनाते हैं... जो भी बचे हैं समान सजावट के, चलो चलकर साथ ले आते हैं, पूजन भी तो है आज अपने घर, चलो सारी नाराजगी मिटाते हैं... सुनो, तुम रंगोली बनाना हम छत को सजाते हैं, चल फिर साथ चलकर प्रेम का, एक दीपक तुम एक हम भी जलाते हैं... ........... ©अपनी कलम से

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