अंत नहीं चाह की मगर
चुनना मन को चाहिए
पाप पुण्य मन में ही है
मन को क्या क्या चाहिए।
नहीं चाहिए दश आनन
न स्वर्ण धाम चाहिए
वन में सहर्ष गमन करे
आदर्श ऐसे राम चाहिए।
दशशीश में भटक रहा
मन को विश्राम चाहिए
असत्य पर विजय के लिए
सत्य को भी राम चाहिए।
अधर्म को नमन नहीं
न सत्य को नाम चाहिए
त्याग में तपे राम को
राम में भी राम चाहिए ।
नहीं चाहिए चन्द्रहास
न कोई विमान चाहिए
मानवता की शिला को
चरण रज श्री राम चाहिए।
दंभ का दमन करे जो
प्रयास अविराम चाहिए
जलधि त्राहि त्राहि करे तो
कोदंड को भी राम चाहिए।
न चाहिए छल कभी भी
न कभी अभिमान चाहिए
सेतु बना सके समुद्र में
मन को ऐसे राम चाहिए ।
विकल्प है अनेक किंतु
श्रेष्ठ समाधान चाहिए
द्वन्द्व में दुःखी मन को
चुनना श्री राम चाहिए ।
✍मन्मंथ
©Manmanth Das
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