जाने किन मुख़्तलिफ़
बातों में उलझे रहे,
और ज़रूरी बातों को जाने दिया।
वक़्त को काफी था,
पास हमारे....
सब कुछ शुरू से शुरू कर लेने को।
चलो...."शुरुवात" न सही,
पर "हश्र" अपने हिसाब का
लिख लेने को।
पर हम उस ला-वजूद "कल"
का सोचते रहे,
और हाथों में रखें
इस "आज" को
फ़िसल जाने दिया।
©Dr Jyotirmayee Patel