एक मैं हूं और यहां बस तू है ।
और सांसों की ही गुफ्तगू है ।
संदली सी हवा का वो झोंका
टकराए बदन से तो लगता
ओढ़ कर खुशबूओं की चादर तू है ..तू है ..सिर्फ तू है
दिसंबर की सुबह की शबनम
जगाती मुझे देखकर कोई सिरहन
उन शबनम की बूंदों में बस रही तू है.. तू है ..सिर्फ तू है ..
ख्वाब के भी वो तेरे चुम्बन
जमा देते है नब्ज़ और धड़कन
नरम बाहों के घेरे में तेरे
लिपट जाऊ इतनी सी बस आरजू है
एक मैं हूं यहाँ ओर एक तू है
और साँसों की ही गुफ्तगू है।…🖋️🥰🤝 निसार
©नितिन "निसार"
#forheadkiss