दिल जंगल में आग लगी है,इक चेहरा जलता जा रहा,
गम के बादल हैं छाए बस अब्र बरसना बाकी है।।
-क़ातिब
पूरी ग़ज़ल कैप्शन में पढ़े,ज़िया मज़कूर की ज़मीन पर कही ये मेरी ग़ज़ल
उसकी आँखों में अब तक जो कुछ भी मेरा बाकी है,
रफ्ता रफ्ता ही लेकिन उन सबका मरना बाकी है।।
प्यार मुहब्बत कसमे वादे करके सारे देख लिए,
अब लगता है इस दरिया के पार भी दुनिया बाकी है।।
सब ताबीजे पहनके देखी सब तदबीरें कर डाली,
शायद उस लड़की का दुआ में हाथ उठाना बाकी है।।