अनपढ कहे जाते थे जब हम जानवरों को भी पढ़ लिया करत | हिंदी कविता

"अनपढ कहे जाते थे जब हम जानवरों को भी पढ़ लिया करते मन के दर्द समझ जाते थे जब पेड़ों की छांव में आराम किया करते अब कलपुर्जों से लगभग सारे काम किया करते हैं जरूरत घट गई इंसान की इसलिए अब रिश्ते बीमार रहते हैं सोचने वाली बात है नेकियों को बेवकूफियों की मचान बोलते हैं मशीनो का इस्तेमाल कर रहे हैं या मशीनों से इस्तेमाल हो रहे है सोचने समझने की क्षमताओं में जैसे कंगाल हो रहे हैं मायाजाल में उलझकर तंदुरुस्ती में भी तंगहाल हो रहे हैं बबली भाटी बै ©Babli BhatiBaisla"

 अनपढ कहे जाते थे जब हम जानवरों को भी  पढ़ लिया करते 
मन के दर्द समझ जाते थे जब पेड़ों की छांव में आराम किया करते 
अब कलपुर्जों से लगभग सारे काम किया करते हैं 
जरूरत घट गई इंसान की इसलिए अब रिश्ते बीमार रहते हैं 















सोचने वाली बात है नेकियों को बेवकूफियों की मचान बोलते हैं 
मशीनो का इस्तेमाल कर रहे हैं या मशीनों से इस्तेमाल हो रहे है 
सोचने समझने की क्षमताओं में जैसे कंगाल हो रहे हैं 
 मायाजाल में उलझकर तंदुरुस्ती में भी तंगहाल हो रहे हैं 
बबली भाटी बै

©Babli BhatiBaisla

अनपढ कहे जाते थे जब हम जानवरों को भी पढ़ लिया करते मन के दर्द समझ जाते थे जब पेड़ों की छांव में आराम किया करते अब कलपुर्जों से लगभग सारे काम किया करते हैं जरूरत घट गई इंसान की इसलिए अब रिश्ते बीमार रहते हैं सोचने वाली बात है नेकियों को बेवकूफियों की मचान बोलते हैं मशीनो का इस्तेमाल कर रहे हैं या मशीनों से इस्तेमाल हो रहे है सोचने समझने की क्षमताओं में जैसे कंगाल हो रहे हैं मायाजाल में उलझकर तंदुरुस्ती में भी तंगहाल हो रहे हैं बबली भाटी बै ©Babli BhatiBaisla

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