ख़ुशी
किसी भी इंसान की ज़िंदगी का उतना ही खूबसूरत हिस्सा है जितना की सुकून।
और उतना ही जरुरी भी जितना की ज़िंदगी खुद।
पर ,,,पर एक इंसान खुश कब होता है ?
क्या जब उसके चेहरे पर एक मुस्कान है, तब ?
या वो मुखोटे वाली मुस्कान जिसमे चेहरे पर एक हंसी है और इंसान खुश नज़र आ रहा है सबको, तब ?
चलो मान लिया हाँ वो खुश है , क्यों,,,,क्युकी चेहरे पर मुस्कान है उसकी।
शायद तुम सही हो सकते हो उसकी उस मुस्कान को देख कर, पर,,,पर क्या हमे इन आँखों से उसके होंठो के वक्र और गालो के उभार को ही देखना चाहिए ?
अगर हाँ तो तुम सही हो, वो खुश है।
पर मुझे क्यों नहीं लगता की वो खुश है, क्यों,,,क्युकी मैंने उसके चेहरे की मुस्कान से पहले उसकी आँखों में देखा।
शायद हाँ, इस बार में सही हूँ क्युकी मुस्कानें झूठी भी हो सकती है और जुबां भी झूठ बोल सकती है।
यही तो मुखौटा होती है शायद।
पर आँखे,,,आँखे कभी झूठ नहीं बोलती बस हमें देखने की जरूरत होती है एक बार।
इंसान शायद खुद से खुश नहीं होता है वो खुश हमेशा उसके अपनों के साथ और उनकी ख़ुशी में ही नज़र आएगा।
यह बात मैं अक्सर ऐसे ही कहा करता था की उसकी ख़ुशी में मेरी ख़ुशी है।
पर अब जान गया हूँ ये सच है।
शायद ऐसी ही होती है असली ख़ुशी।
©Shayer Sahab
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