ना जाने क्यों बस रातें ही उनकी याद दिलाती है ,
एक उम्र निकालनी है अब बगैर रातों के ;
की जिंदगी बस कट ही रही है शाम दर शाम ,
एक शाम और गुजारनी है अब बगैर यादों के ;
कि कभी बीते वक़्त में वापस जा पाते तो ,
क्या ही खुशकिस्मत समझते खुद को हम ;
रोक ही लेते खुद को हम आपको चाहने से ,
कि अब एक उम्र निकालनी है बगैर मुलाकातों के |
©Vibhu Karn
कैसी गुजरेगी ये उम्र अब?..
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