जीने के खातिर सब मरे जा रहे है! ये कैसी दौड़ है के | हिंदी Shayari

"जीने के खातिर सब मरे जा रहे है! ये कैसी दौड़ है के सब भागे जा रहे है!! सूरज को देख घर से निकलता हु,चाँद से मिलकर घर आता हु! ये जीवन है साहब बस यु ही दिन बीते रहे है!! ©Er Atul Saini"

 जीने के खातिर सब मरे जा रहे है!
ये कैसी दौड़ है के सब भागे जा रहे है!!
सूरज को देख घर से निकलता हु,चाँद से मिलकर घर आता हु!
ये जीवन है साहब बस यु ही दिन बीते रहे है!!

©Er Atul Saini

जीने के खातिर सब मरे जा रहे है! ये कैसी दौड़ है के सब भागे जा रहे है!! सूरज को देख घर से निकलता हु,चाँद से मिलकर घर आता हु! ये जीवन है साहब बस यु ही दिन बीते रहे है!! ©Er Atul Saini

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