तुम्हें खुद ही पता नहीं क्या हो तुम,
जमाने को हँसाते रहो यू ही सदा तुम।
कभी फूल,कभी जलता दिया हो तुम,
फिजाओं में फैली रोशन सी वफ़ा हो तुम।
तुमको बिन छुये और देखे भी मसहूस करू मैं,
जो बिन माँगें मुक़म्मल जो जाए वो दुआ हो तुम।।
ये सच है कि प्यासे हैं हम प्यार के...
यूँ जो खिंचे चले आते हैं तुम्हारी ओर,
जैसे जमीं पे मोहब्बत की आख़री निशान हो तुम।।
सब होड़ में हैं यहां एक दूसरे से आगे जाने को,
मैं जहाँ आकर रुक गया वो आख़री पता हो तुम।।
©Navneet
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