पानी-पानी क्यों हुए,करके ऐसा कर्म। डूबे क्यों पानी | हिंदी Poetry

"पानी-पानी क्यों हुए,करके ऐसा कर्म। डूबे क्यों पानी भला,समझ न आए मर्म। तिनका -तिनका जोड़ भी,पानी जाती भैंस- पानी सब रखते नहीं,करने दिखावा धर्म।१ पानी रंग बदल गया,पानी बुलबुला काल। लिखना पानी पर सदा,हुआ पूछना हाल। उल्लू अपना साधने,डटे हुए सब लोग- बहते पानी जो बने,सदा रहें बदहाल।२ नयनों में पानी नहीं,मनुज हुआ है काठ। लाशों के ही ढेर पे,चढ़कर उसके ठाठ। कौन कितने पानी में,इसका छिड़ता जंग- गहरे पानी बैठकर,सीखें जीवन पाठ।३ पानी मुँह लाएँ नहीं,रखें नियंत्रित जीभ। पानी बिन सूना सभी,असली यह तहजीब। पानी सर पे जब चढ़े,ढूँढे सभी उपाय- पानी फिर जाए नहीं,सोचें यह तरकीब।४ ©Bharat Bhushan pathak"

 पानी-पानी क्यों हुए,करके ऐसा कर्म।
डूबे क्यों पानी भला,समझ न आए मर्म।
तिनका -तिनका जोड़ भी,पानी जाती भैंस- 
पानी सब रखते नहीं,करने दिखावा धर्म।१

पानी रंग बदल गया,पानी बुलबुला काल।
लिखना पानी पर सदा,हुआ पूछना हाल।
उल्लू अपना साधने,डटे हुए सब लोग-
बहते पानी जो बने,सदा रहें बदहाल।२

नयनों में पानी नहीं,मनुज हुआ है काठ।
लाशों के ही ढेर पे,चढ़कर उसके ठाठ।
कौन कितने पानी में,इसका छिड़ता जंग-
गहरे पानी बैठकर,सीखें जीवन पाठ।३

पानी मुँह लाएँ नहीं,रखें नियंत्रित जीभ।
पानी बिन सूना सभी,असली यह तहजीब।
पानी सर पे जब चढ़े,ढूँढे सभी उपाय-
पानी फिर जाए नहीं,सोचें यह तरकीब।४

©Bharat Bhushan pathak

पानी-पानी क्यों हुए,करके ऐसा कर्म। डूबे क्यों पानी भला,समझ न आए मर्म। तिनका -तिनका जोड़ भी,पानी जाती भैंस- पानी सब रखते नहीं,करने दिखावा धर्म।१ पानी रंग बदल गया,पानी बुलबुला काल। लिखना पानी पर सदा,हुआ पूछना हाल। उल्लू अपना साधने,डटे हुए सब लोग- बहते पानी जो बने,सदा रहें बदहाल।२ नयनों में पानी नहीं,मनुज हुआ है काठ। लाशों के ही ढेर पे,चढ़कर उसके ठाठ। कौन कितने पानी में,इसका छिड़ता जंग- गहरे पानी बैठकर,सीखें जीवन पाठ।३ पानी मुँह लाएँ नहीं,रखें नियंत्रित जीभ। पानी बिन सूना सभी,असली यह तहजीब। पानी सर पे जब चढ़े,ढूँढे सभी उपाय- पानी फिर जाए नहीं,सोचें यह तरकीब।४ ©Bharat Bhushan pathak

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