"अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत है
दुनिया मिरे ज़ख़्मों की तलबगार बहुत है
अब टूट रहा है मिरी हस्ती का तसव्वुर
इस वक़्त मुझे तुझ से सरोकार बहुत है
मिट्टी की ये दीवार कहीं टूट न जाए
रोको कि मिरे ख़ून की रफ़्तार बहुत है
हर साँस उखड़ जाने की कोशिश में परेशाँ
सीने में कोई है जो गिरफ़्तार बहुत है
पानी से उलझते हुए इंसान का ये शोर
उस पार भी होगा मगर इस पार बहुत है
©Daniyal
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