दर्द की बूँदें, कागज पर बिखरती रहीं, अवसाद में, रा | हिंदी Love

"दर्द की बूँदें, कागज पर बिखरती रहीं, अवसाद में, रात भर लिखता रहा। नक्षत्रों से मिले, आकाश की ऊँचाइयाँ, मैं चाँद की छाँव में, छिपा रहता रहा। अगर टूट जाता, कब का मैं मिट गया होता, मैं तो नाज़ुक शाखा, सबके आगे झुकता रहा। लोगों के रंग बदले, अपने-अपने ढंग से, मेरे रंग में भी आई चमक, पर मैं हर बार घुलता रहा। जो थे आगे बढ़ने में, वो मंज़िल की ओर चले, मैं गहराइयों में समुद्र का रहस्य समझता रहा। (सिद्धार्थ दाँ) - मेरी कलम ©kalam_shabd_ki"

 दर्द की बूँदें, कागज पर बिखरती रहीं,
अवसाद में, रात भर लिखता रहा।

नक्षत्रों से मिले, आकाश की ऊँचाइयाँ,
मैं चाँद की छाँव में, छिपा रहता रहा।

अगर टूट जाता, कब का मैं मिट गया होता,
मैं तो नाज़ुक शाखा, सबके आगे झुकता रहा।

लोगों के रंग बदले, अपने-अपने ढंग से,
मेरे रंग में भी आई चमक, पर मैं हर बार घुलता रहा।

जो थे आगे बढ़ने में, वो मंज़िल की ओर चले,
मैं गहराइयों में समुद्र का रहस्य समझता रहा।

(सिद्धार्थ दाँ)
- मेरी कलम

©kalam_shabd_ki

दर्द की बूँदें, कागज पर बिखरती रहीं, अवसाद में, रात भर लिखता रहा। नक्षत्रों से मिले, आकाश की ऊँचाइयाँ, मैं चाँद की छाँव में, छिपा रहता रहा। अगर टूट जाता, कब का मैं मिट गया होता, मैं तो नाज़ुक शाखा, सबके आगे झुकता रहा। लोगों के रंग बदले, अपने-अपने ढंग से, मेरे रंग में भी आई चमक, पर मैं हर बार घुलता रहा। जो थे आगे बढ़ने में, वो मंज़िल की ओर चले, मैं गहराइयों में समुद्र का रहस्य समझता रहा। (सिद्धार्थ दाँ) - मेरी कलम ©kalam_shabd_ki

#river

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