सियाहसत की हवा अब बह ना पाए,
करो कोई जतन कि सारा जहां मुस्कुराए।
बादलों की ओट में चिघर रहीं हैं आवाज,
फिक्र नहीं लोगों की मौत आती बिन बुलाए।
जरा ठहाके न लगाओं खुद की करतूतों पर अब
कि कहीं ये ठहाका समुंदर की बाढ़ न बन जाए।।
बिखर रही मानव संस्कृति आज कोई ऐसा
फरिश्ता बनाओ, जो इस पर रोकथाम लगाए
अपराधों की गठरी में खुद न सिमट कर अब
आओ एकजुट हो हम सब ऐसा एक पहल लगाएं।।
©Shilpa yadav
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