कुछ इस कदर रूठ गई जिन्दगी जैसे हाथों में आके छूठ गई जिन्दगी
अब तो किसी तरफ उजाला नही घनी काली रात बन गई जिन्दगी
जब आती है तो चंद मिनटों की खुशी बनकर जिन्दगी फिर
खोजता हुँ अंधरो में वही जिन्दगी
क्या कहूँ उसे और कैसे देखूँ उसे अब तो आँखों से धार
बन गई है जिन्दगी
वो भी क्या करे उसका भी मुझसे ही वास्ता है दखो फिर
मजबुर सी हो गई है जिन्दगी ।।
©sanjay Punia
जिन्दगी