पल्लव की डायरी
रेवड़ियों में लोकतंत्र फ़ँसा है
व्यवस्था सब कराहती है
रोजगार व्यापार सब ठप्प
महँगाई सुरसा जैसी बढ़ती जाती है
चुनाव जीतना ही कामयाबी लोकतंत्र की
पाप सियासतों के सब छिपाती है
पौधे सब मुरझा रही,युवा बनकर
भविष्य अपना तय नही कर पा रही है
दखल राजनीतिक चहुँ और बढ़ गया
आमजनों का जीवन दुष्वार हो रहा है
©Praveen Jain "पल्लव"
#Likho रेवड़ियों में लोकतंत्र फ़ँसा है