ये कुहरा है घना सा जो छँटता ही नहीं ये वक़्त ऐसा | हिंदी Shayari

"ये कुहरा है घना सा जो छँटता ही नहीं ये वक़्त ऐसा है क्यूँ कि कटता ही नहीं ख़ुशी के तराने खेलते भी हैं गोद में पर दर्द है कुछ ऐसा कि ये बँटता ही नहीं कितने पन्ने फाड़े मैंने इसमें यूँ ही पर ऐसा भी नहीं है कि मैं लिखता ही नहीं सोचता कहता लिखता बहुत हूँ पर ऐसा भी नहीं है कि मैं थकता ही नहीं मंज़िल की ओर तो निकल आया "जग्गी" पर ऐसा भी नहीं है कि मैं भटकता ही नहीं ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!"

 ये कुहरा है घना सा जो छँटता ही नहीं 
ये वक़्त ऐसा है क्यूँ कि कटता ही नहीं

ख़ुशी के तराने खेलते भी हैं गोद में पर 
दर्द है कुछ ऐसा कि ये बँटता ही नहीं

कितने पन्ने फाड़े मैंने इसमें यूँ ही पर 
ऐसा भी नहीं है कि मैं लिखता ही नहीं

सोचता कहता लिखता बहुत हूँ पर 
ऐसा भी नहीं है कि मैं थकता ही नहीं

मंज़िल की ओर तो निकल आया "जग्गी"  
पर ऐसा भी नहीं है कि मैं भटकता ही नहीं

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

ये कुहरा है घना सा जो छँटता ही नहीं ये वक़्त ऐसा है क्यूँ कि कटता ही नहीं ख़ुशी के तराने खेलते भी हैं गोद में पर दर्द है कुछ ऐसा कि ये बँटता ही नहीं कितने पन्ने फाड़े मैंने इसमें यूँ ही पर ऐसा भी नहीं है कि मैं लिखता ही नहीं सोचता कहता लिखता बहुत हूँ पर ऐसा भी नहीं है कि मैं थकता ही नहीं मंज़िल की ओर तो निकल आया "जग्गी" पर ऐसा भी नहीं है कि मैं भटकता ही नहीं ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#kohra

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