अब लोग कहां किसी से कोई गुफ़्तगु किया करते हैं,
बेजान हैं तभी तो शायद मुर्दों की तरह जिया करते हैं।
मैं अपने ज़ख्मों को बयां करूं भी तो किसके दरपेश करूं?
अब कहां इस जहां में कोई हमदर्द हुआ करते हैं ।
©D.R. divya (Deepa)
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