जो छूट जाए किसी के खौफ से वो लत नहीं हुआ करती,
जहां मिले गुनहगारों को रिहाई और बेगुनाहों को सजा वो अदालत नहीं हुआ करती |
और अक्सर पानी से पानी पर पानी लिखना पड़ता है ग़ालिब......
समझौतों में सिमट कर रह जाए वो हर आशिकी मोहब्बत नहीं हुआ करती||
©' मुसाफ़िर '
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