कई चले तुफान और कई चली हैं आंधियां ।
पर मेवाड़ ऐसा दीप है,जो कभी बुझता नहीं।।
कई तूफा आए हैं, कई चले गए।
गिरी हो कोई इमारतें,तो यार हमे बताओं तुम।।
कई चली हैं आंधियां, कई चली पुरवाइया।
बुझी हो कोई मशाले यहां ,तो यारो हमे बताओ तुम।।
ये धरा मेवाड़ की ,ये धरा स्वाभिमान।
आन की हे, बान की ,शान की गुमान की।।
©ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)