हे अधर्मी! अधर्म तुम्हारा, जग से न तुम्हें मिलेगा किनारा।
कितना भी गंगा में स्नान कर लो,पाप से मुक्ति ना मिले तुझे, यह श्राप है मेरा।
मैं चंचल एक आत्मा थी, जिसे जीने की चाह थी,
मारकर मेरे रूह को, तुमने मुझे एक जिंदा लाश बनाया।
बच न सकोगे मेरे प्रकोप से, शिव आराधक हूँ मैं,
आज न्याय की आस में तांडव करती हूँ।
लोभ-मोह की यह छल-छाया, धर्म का केवल स्वांग तुमने रचाया।
जिन्हें आश्रय देने का वचन दिया, उनके यौवन को छूकर तुमने,
अपनी मृत्यु का निमंत्रण दिया।
नाश होगा पापी तेरा,काल भैरव की दृष्टि में न कोई संशय, न भ्रम।
चाहे गंगा में कितनी भी बार डूबो, शिव का दास बनने का स्वांग रचो,
पर अधर्म की राह पर हो तुम अभागी।
जिस्म और रूह के साथ ही नहीं,
कलंकित कर तुमने रिश्तों का भी मज़ाक बनाया।
शिव मेरे पिता, मेरे त्राता, उनके न्याय का समय है आता।
धर्म का पालन, सत्य की धारा, तुम्हें मिलेगा बस अधर्म का किनारा।
तुमने तोड़ा वह विश्वास, जो था एक बेटी का अपने त्रिपुरारी से।
अब तुम्हारे पापों का लेखा, काल भैरव की दृष्टि से न छुपेगा।
याद रखो, यह सत्य सनातन, हर पाप की होती पहचान।
शिव की कृपा से भी विमुख हो गए तुम,
अब तुम्हारा नाश तय है, तांडव करता यह प्रचंड न्याय का हाथ।
©J.S.T.quote
#SAD feelings #shivtandav #shivaradhak