मुल्क में फिरका परस्ती को हवा दी तुमने
यानि अंग्रेज की फिर याद दिला दी तुमने
चादर असमत की कभी सर पे जला दी तुमने
कभी मजलूम की गर्दन भी उड़ा दी तुमने
रूह जब छोड गई तन तो सदा दी तुमने
ए मसीहाओ बहुत देर लगा दी तुमने
तुमने हमदर्दी व इख्लाक की कब्रे खोदी
अपने ही मुल्क की तहजीब गवां दी तुमने
जिस कहानी से तफरीक की बू आती है
क्या कयामत है कि वो बच्चों को सुना दी तुमने
हम अगर शमा मुहब्बत भी जलाये तो जलन हो तुमको
सारे गुलशन में तो ऐ रमजानी आग लगा दी तुमने
17/6/15
©MSA RAMZANI
Ghazal