हे नाथ मेरे हालत मेरी
गजेन्न्र से कुछ कम नही
अब भी बचाने न आया तूं
तो लोग कहेंगे तूं गोविंद नहीं
तूने द्रौपदी की लाज बचाई
बेर शबरी के जूठे खाए है
कुब्जा को दिया रूप सुहाना
विदूर की भाजी खाई है
मैं आन पड़ी तेरे द्वार कन्हैया
अब बारी मेरी आई है
उमड़ रही है अखियां मोरी
आंखों में नदियां सारी है
मेरी बांह पकड़ मोरे सांवरिया
इस दासी को जरूर तुम्हारी है
©Shilpapandya
©Shilpa
#Krishna