White डाॅ. श्रवण कुमार सोलंकी
जीवन को कुछ समझ लेने के बाद-
उन मृगतृष्णाओं पर हंसी आती है;
जो अब अर्थहीन हो गई है।
लेकिन नयी मृगतृष्णा अर्थवान जान पड़ती है,
एक दिन ये भी अर्थहीन हो जाना है।
मृत्यु तक आदमी को तृष्णा ही थामें है।
मिलते ही निरर्थक होने वाली इच्छायें-
एक हल्का धक्का देकर जीवन से विदा हो जाती;
ये करना है और वो हो जाये बस !
जीवन भर यही सब चलता है।
एक विश्रांति का समय भी आता है,
तब सबकुछ व्यर्थ जान पड़ता है।
एक पल के लिए लगता है जीवन व्यर्थ हो गया;
और अगले पल संसार के बहाव के साथ हो जाते।
कभी लगता है सब अनायास हो रहा है,
हम साक्षी मात्र है जीवन के बीतने के,
कुछ बदलाव वश में ही नही है हमारे,
फिर भी हम दंभ भरते है कि हम ही कर्ता है।
कोई स्क्रिप्ट की तरह होता है कभी-कभार
हम मेहसूस भी करते हैं लेकिन रोक नही सकते उसे
हम क्या कोई देवता समर्थ नही हैं,
ग्रह की गति में हस्तक्षेप असंभव है।
©Shravan Solanki
#Moon