धीरे- धीरे झुरमुटों में, वो मेरा आफताब, अब ढल गया,
देखो ना पूरा आसमान ये, किन अंधेरों से फिर भर गया ।
ख़ामोश- सा बस चल रहा था, जो तुम्हारे साथ - साथ,
ये फिजाएं पूछती हैं, कि वो शख़्स अब किधर गया ।
मिलती नहीं फुर्सत मुझे अब, तुझे याद करने की ज़रा,
एक अरसा हुआ, वो दौर तो कब का भला, गुज़र गया ।
इन सुनसान सी राहों को क्यों, अब ताकते हो दूर तक,
खोजता है दिल जिसे, वो पुराना यार, अब शहर गया ।
ख़्वाब की इन बारिशों में, आज जो खोए हैं जो 'राज़',
मुड़ के देखा जो उसने फिर तो, सारा खुमार उतर गया ।
©Rajat Pratap Singh
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