कà¥à¤¯à¤¾ लिखूठजख्मों और सपनों के बीच द्वंध,
मासूम आंखें आंकें किसे कम।
अच्छा रहता, दोनों के सामने ,
काश पलकें झुका पाते हम ।।
यादें कंकर फेंकती हैं,
आंसु मुझे सहेजतीं हैं ।
पृथक ना हो दिल टुकड़े,
आरजू मेरी कहतीं हैं ।।
जिंदगी मेरी गुमनाम क्यूं हैं ?
हर शख्स यहां परेशां क्यूं हैं ??
मिलती मुश्किल से मानव जीवन,
फिर जीवन में इतने इम्तिहाँ क्यूं है ???
ये सवाल भला मुझसे, क्यूं पूछते हो राजेश ??
क्यूं है मानव के मन में, मानव से ही द्वेष ??
पूछ ही लिए हो तो, एक कटु सत्य समझो ,
लालच में मानव अंधा है ,वर्चस्व में बसता क्लेश ।।
©Rj_Rajesh_बली
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