जिनकी चाहत में होके बेजार पड़े थे!!!
क्या पता था कि उनके ही द्वार पड़े थे!!!
मुझे क्या खबर कितने शातिर हैं वो,,,
मेरे जैसे वहां पे हजार पड़े थे!!!
हैं हकीम कोई वो ये मुझे लग रहा,,,
एक ही मर्ज के सब बीमार पड़े थे!!!
वो रकीबों की खिदमत में मशरूफ थे,,,
जिनकी दहलीज पे हम अजार पड़े थे!!!
बात ही बात में ये पता भी चला,,,
सबके खाते में उनके उधार पड़े थे!!!
किसी की घड़ी तो किसी की छड़ी,,,
कुछ तो ऐसे थे जिनके दीनार पड़े थे!!!
हमें लग रहा था हमीं हैं खफा,,,
पर उनके भी दिल में दरार पड़े थे!!!
सब कहने लगे कि हैं मक्कार वो,,,
पर उनके भी पीछे मक्कार पड़े थे!!!
नवरत्न""अर्पित""
मुम्बई
03/05/2023
©Navratna Arpit
#Night