White न छप्पर फूटा, न धन मिला, इंतज़ार-ए-वक़्त में, | हिंदी कविता

"White न छप्पर फूटा, न धन मिला, इंतज़ार-ए-वक़्त में, सारा जीवन बीत गया, जवान हाथों से किया कुछ नही, जिम्मेदारियों को यूं ही छोड़ दिया, पालनहार भगवान भी अब क्या करे, जब उसकी व्यवस्था को ही तोड़ दिया, जीवन भर मांगते रहे, झूठ बोलते रहे, कोसते रहे, लड़ते रहे, फिर शिकायत क्यो, जब सबने साथ छोड़ दिया। जीवन भर रिश्ते तोड़ते गये, साथ छोड़ते गये, न पिता की बैसाखी बने, न भाई का काँधा, वक़्त भी खुद ही पीछे छोड़ दिया। अपनी लाठी जब खुद ही बनो, धरातल पर भी कुछ दूर चलो, राह के पत्थर हटा सको, तब मंज़िल बस उंसको मिले, जिसने व्यसन छोड़ दिया। wtitten by:- संजय सक्सेना, प्रयागराज। ©Sanjai Saxena"

 White न छप्पर फूटा, न धन मिला,
इंतज़ार-ए-वक़्त में, सारा जीवन बीत गया,

जवान हाथों से किया कुछ नही, 
जिम्मेदारियों को यूं ही छोड़ दिया,

पालनहार भगवान भी अब क्या करे, 
जब उसकी व्यवस्था को ही तोड़ दिया,

जीवन भर मांगते रहे, झूठ बोलते रहे, 
कोसते रहे, लड़ते रहे, फिर शिकायत क्यो, 
जब सबने साथ छोड़ दिया।

जीवन भर रिश्ते तोड़ते गये, साथ छोड़ते गये, 
न पिता की बैसाखी बने, न भाई का काँधा, 
वक़्त भी खुद ही पीछे छोड़ दिया।

अपनी लाठी जब खुद ही बनो,
धरातल पर भी कुछ दूर चलो,
राह के पत्थर हटा सको,
तब मंज़िल बस उंसको मिले, 
जिसने व्यसन छोड़ दिया।

wtitten by:-
संजय सक्सेना, 
प्रयागराज।

©Sanjai Saxena

White न छप्पर फूटा, न धन मिला, इंतज़ार-ए-वक़्त में, सारा जीवन बीत गया, जवान हाथों से किया कुछ नही, जिम्मेदारियों को यूं ही छोड़ दिया, पालनहार भगवान भी अब क्या करे, जब उसकी व्यवस्था को ही तोड़ दिया, जीवन भर मांगते रहे, झूठ बोलते रहे, कोसते रहे, लड़ते रहे, फिर शिकायत क्यो, जब सबने साथ छोड़ दिया। जीवन भर रिश्ते तोड़ते गये, साथ छोड़ते गये, न पिता की बैसाखी बने, न भाई का काँधा, वक़्त भी खुद ही पीछे छोड़ दिया। अपनी लाठी जब खुद ही बनो, धरातल पर भी कुछ दूर चलो, राह के पत्थर हटा सको, तब मंज़िल बस उंसको मिले, जिसने व्यसन छोड़ दिया। wtitten by:- संजय सक्सेना, प्रयागराज। ©Sanjai Saxena

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