लौटा दे बचपन के वो दिन
खुला आसमान, खुली थी जमीन
पैरों में ना थी कोई जंजीर
फ़िजा मे भी थी बहारें कई
चिंता की ना थी कोई लकीर
घुंघरू की तरह बजती ही रही
नजरों में ना थी कभी ख़लली
इन्द्रधनुषी रंगों से दीवारें थी सज्जी
सवालातों कि ना थी बंदिश कोई
कई अविष्कारों की जननी यह बनी
लौटा दे बचपन के वो दिन
मेरी तुझ से इल्तिजा अब है यही।
©Sunita Sharma
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