मैं हूँ वो लड़का
रहता कामों में व्यस्त है,
फिर भी देखो कितना मस्त है...
हर किसी को करता प्रेम,
न चाहता किसी से बैर...
बस अपनी धुन में चलता जाये,
कभी किसी पर न चिल्लाये...
'मैं हूँ वो लड़का'
ग़म में भी जो मुस्कुराए,
ख़ुद हंसे, सबको हँसाय...
एक बचपना सा बसता है उसमें,
खेल-खेल में, बच्चा हो जाए...
हाँ, 'मैं हीं हू वो लड़का'
जो कभी न लड़खड़ाये,
पर अक्सर सबको सताये...
आनेवाला कल जिसपर हावी हो,
सब जानते हुए भी, टालता जाए...
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©अपनी कलम से
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