White वयां करती है कभी इश्क़, कभी रंज,
मेरे दर्द से आँखें चार नहीं करती।
नज़रें मिले तो मुड़ जाए कहीं,
वो अब मेरे साथ नहीं चलती।
स्टेटस से बयाँ करती है अपना दर्द,
वो मुझसे अब प्यार नहीं करती।
जो कहती थी, "सात खून माफ़ तेरे",
गलती पर अब आँखें चार नहीं करती।
कसती है अपने शब्दों से मुझपे तंज,
सीधे-सीधे अब मुझसे कुछ नहीं कहती।
बयाँ करती है मुझसे अपने रंज सभी,
वो आँखों से कत्ल-ए-आम नहीं करती।
©theABHAYSINGH_BIPIN
#Thinking
वयां करती है कभी इश्क़, कभी रंज,
मेरे दर्द से आँखें चार नहीं करती।
नज़रें मिले तो मुड़ जाए कहीं,
वो अब मेरे साथ नहीं चलती।
स्टेटस से बयाँ करती है अपना दर्द,
वो मुझसे अब प्यार नहीं करती।