ठुकरा के दिल को मेरे न अब जाइए जनाब।
फिर मेरी ज़िंदगी में चले आइए जनाब।।
खाली उदास सी है मेरी दिल की हवेली
सूनी हवेलियों में खुशी लाइए जनाब।
माना बहुत ख़ताएं हुई मुझसे आजतक
मुँह मोड़कर न ऐसे चले जाइए जनाब।
गुज़रे हैं कई शब मेरे तनहा अंधेरों में
मुझमें चराग-ए-ईश्क जला जाइए जनाब।
मौसम ख़िज़ाँ का दिल में मेरे मुद्दतों से है
गुल आशिकी का दिल में खिला जाइए जनाब।
दोनों के दिल में बढ़ गई है इश्क़ की तपिश
चाहत की बारिशों में भीग जाइए जनाब।
करता है गुज़ारिश दिलेनादाँ ये "पिनाकी"
दिल की इस आरज़ू को न ठुकराइए जनाब।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक
©Ripudaman Jha Pinaki
#ग़ज़ल