गीता की प्रमुख शिक्षाएं
मनुष्य को केवल कर्म करना ही अधिकार में है, उसका फल नहीं। इसलिए फल की चिंता छोड़कर केवल कर्म करो।
ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग में गृहस्थों के लिए सिर्फ कर्मयोग ही सर्वोत्तम है, उसे कर्मयोग पर ही ध्यान देना होता है।
आत्मा न पैदा होती है, न मरती है, आत्मा तो अमर होती है।
हर जन्म में शरीर बदलता रहता है। इसलिए अपने शरीर से नहीं आत्मा से प्यार करें।
जिसने पृथ्वी पर जन्म लिया है, उसकी मृत्यु होना निश्चित है। मृत्यु के पश्चात दोबारा जन्म भी लेना निश्चित है।
सुख-दुख, लाभ-हानि और मान-अपमान में जो सामान रहता है। वही व्यक्ति बुद्धिमान और सच्चा योगी माना गया है।
अच्छे और बुरे कर्म का फल निश्चित मिलता है। परन्तु यह कब मिलेगा, यह प्रकृति या ईश्वर पर निर्भर करता है।
मनुष्य का मन बहुत चंचल होता है तथा अनेक प्रकार के पापों का कारण है। इसलिए मन को वश में करके
भक्ति और सद्विचारों को संलग्न करना चाहिए।
सब जीवों को अपने समान समझना और जीवो के प्रति दया का भाव रखने वाले मनुष्य को श्रेष्ठ योगी माना गया हैं।
इंसान को मन पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है, जिसने मन नियंत्रित नहीं है, उसके लिए मन ही उसका शत्रु होता है।
इन सांसारिक वस्तुओं से मोह बेकार है। क्योंकि इस जन्म में यह तुम्हारी और अगले जन्म में किसी और की होगी
। इसलिए वस्तुओं से मोह माया नहीं रखना चाहिए।
जो इंसान अनन्य भाव और भक्ति से केवल मेरा (भगवान) चिंतन करता है और मेरी उपासना करते हैं।
उनके सारे कष्टों को मैं स्वयं वहन करता हूँ।
©purvarth
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