सठियाने की व्यथा
साठ वरस से अधिक हो गए इस जीवन को,
दुःख - सुख के अनगिनत थपेड़े हमने खाये।
अपनी कितनी खुशियों की कुर्बानी देकर,
जो पाए वो सब कुछ तुम पर सहज लुटाए।।
आज जरा सा पक्ष रखा जो हमने अपना,
तुम अपने स्तर पर लेकर हमको आये।
आज हमारे ही घर मे हमको कहते हो,
उम्र हो गयी इसीलिए हम हैं सठियाये।।
सही कहे, सठियाना है पागल हो जाना,
जीवन के प्रश्नों का खुद ही हल हो जाना।
पर इन कोरी बातों को तुम ना गठियाना,
चलो हमारी जाने दो, तुम ना सठियाना।।
........कौशल तिवारी
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©Kaushal Kumar
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