मत पुछ मेरे जागने कि वजह ए चांद... अक्स तेरा ही उसमे उतर आया है यूं कुछ इस तरह... कि अब ना, तलब तुझे देखनी की होती हे... और अब दिख वो जाते है तुझमें कुछ यूं इस.
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