शीशे की खिड़की पर.. 
कुछ ओस गिरे थे यूँ.. 
जैसे भी
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शीशे की खिड़की पर.. कुछ ओस गिरे थे यूँ.. जैसे भीगे एहसास थे कोई..! छू कर जो देखा उन्हें.. उनमें छवि तेरे दिल की.. मेरे दिल को नज़र आई.! पास जा कर उन गिरते बूंदों को.. जब हल्के से छुआ मैंने.. पिघल कर वो धीरे धीरे.. मेरे बदन से हो कर.. फ़र्श पर.. गिरते हुए नज़र आईं..! ना तब वो, पहले के.. वो ओस नज़र आये.. ना वो बुँदे नज़र आये कहीं..! दिल को तब ये महसूस हुआ.. कि जैसे तेरे एहसास.. समा गए थे मुझमें ही कहीं.. यकीनं मुझमें ही कहीं..! ©Jayashree Mishra.

 शीशे की खिड़की पर.. 
कुछ ओस गिरे थे यूँ.. 
जैसे भीगे एहसास थे कोई..!

छू कर जो देखा उन्हें.. 
उनमें छवि तेरे दिल की.. 
मेरे दिल को नज़र आई.!

पास जा कर उन गिरते बूंदों को..
जब हल्के से छुआ मैंने..

पिघल कर वो धीरे धीरे.. 
मेरे बदन से हो कर.. फ़र्श पर..
गिरते हुए नज़र आईं..! 

ना तब वो, पहले के.. 
वो ओस नज़र आये..
ना वो बुँदे नज़र आये कहीं..! 

दिल को तब ये महसूस हुआ.. 
कि जैसे तेरे एहसास..

समा गए थे मुझमें ही कहीं.. 
यकीनं मुझमें ही कहीं..!

©Jayashree Mishra.

शीशे की खिड़की पर.. कुछ ओस गिरे थे यूँ.. जैसे भीगे एहसास थे कोई..! छू कर जो देखा उन्हें.. उनमें छवि तेरे दिल की.. मेरे दिल को नज़र आई.! पास जा कर उन गिरते बूंदों को.. जब हल्के से छुआ मैंने.. पिघल कर वो धीरे धीरे.. मेरे बदन से हो कर.. फ़र्श पर.. गिरते हुए नज़र आईं..! ना तब वो, पहले के.. वो ओस नज़र आये.. ना वो बुँदे नज़र आये कहीं..! दिल को तब ये महसूस हुआ.. कि जैसे तेरे एहसास.. समा गए थे मुझमें ही कहीं.. यकीनं मुझमें ही कहीं..! ©Jayashree Mishra.

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