वो गहरे जख्मों को देखकर मुंह मोड़ना
हालातों को हद दर्जे भुलाकर छोड़ना
महंगा पड़ेगा भेद के मूल तत्व को नहीं पहचानना
अपने लिए खड़े होने को भी बोझ जैसा मानना
वो अपने शैतान केलिए कुर्बानी नहीं छोड़ता
और तू अपनी पहचान से भी रहता है मुंह मोड़ता
मेरे ही घर में पनाह मांग आंखें दिखाने वाले
और पृथ्वीराज चौहान की आंखें जलाने वाले
किस तरह से किसी भरोसे के लायक है
छीन लेंगे जर जमीन जोरू इतने नालायक है
केवल एकमात्र मौके की तलाश में है,,
आप किस महजब के विश्वास में है
देखा है कश्मीरी पंडितों के प्रेम और सौहार्द का नतीजा
कुम्भकरणी नींद से और भी भयंकर हो जाएगा फजीता
सखी कम से कम छह महीने में तो जागता था कुंभकर्ण
सैकुलर जयचंद छः सौ सालों से सपनों में करते विचरण
बबली भाटी बैसला
©Babli BhatiBaisla
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