कविता
तुम आयी मेरे जीवन में
अगडित भावों को लेकर
उर
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कविता तुम आयी मेरे जीवन में अगडित भावों को लेकर उर का मंथन किया उदाधि सा कर में लेखनी देकर कभी प्रेम के अश्रु गिरे तो कभी वेदना मन की कोरे कागज पर लिखवाए व्यथा मेरे जीवन की देश काल की घटनाओं से द्रवित हुआ जब भी मन चली लेखनी सरपट लिखने तोड़ के सारे बंधन कभी प्रकृति का रूप निहारा सुंदरता में खोए उसकी छटा देखकर मन में सपने कई संजोए बेखुद साथ तुम्हारा मेरा दिन हो या हो सविता नहीं रुकेगी मेरी लेखनी तुम हो मेरी कविता ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

 कविता
तुम आयी मेरे जीवन में
अगडित भावों को लेकर
उर का मंथन किया उदाधि सा
कर में लेखनी देकर

कभी प्रेम के अश्रु गिरे तो
कभी वेदना मन की
कोरे कागज पर लिखवाए
व्यथा मेरे जीवन की

देश काल की घटनाओं से
द्रवित हुआ जब भी मन
चली लेखनी सरपट लिखने
तोड़ के सारे बंधन

कभी प्रकृति का रूप निहारा
सुंदरता में खोए
उसकी छटा देखकर मन में
सपने कई संजोए

बेखुद  साथ तुम्हारा मेरा
दिन हो या हो सविता
नहीं रुकेगी मेरी लेखनी
तुम हो मेरी कविता

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

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