अज्ञान सर में डूबे प्राणी,ढूँढ रहे ज्ञानी बूँदे। नहीं भटकना ऐसे तुम तो,यहाँ कभी आँखें मूँदे।। समझ-समझकर जो ना समझे,नासमझी इसको मानें। बड़बोली सब रह जाएगी,कर्म क.
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