लिखने लगा हूँ घर-घर के किस्से ,,, घर-घर में एक दिन पढ़ा जाऊँगा ll मेरा देश जो मुझसे अनभिज्ञ है ,,, कभी उसी देश में सुना जाऊँगा ll तरसा है लेखन बोहनी की ख़ातिर.
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