मैं साँसों को थामे रखता हूँ
तू रगों में बहती जाती
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मैं साँसों को थामे रखता हूँ तू रगों में बहती जाती है जितना दूर जाना चाहता हूँ तू उतनी ही करीब आ जाती है मेरी आँखों में बसी है तू पर रोने से भी कहां निकल पाती है जितनी नफरत करना चाहता हूँ तुझसे उतनी मोहब्बत होती जाती है मुझे क्यों लगता है कि तू मुझे अब भी याद करती है तेरा नाम लेता हूँ तो मेरी हिचकियाँ बंद हो जाती है ©साहेब

#कविता  मैं साँसों को थामे रखता हूँ
तू रगों में बहती जाती है
जितना दूर जाना चाहता हूँ
तू उतनी ही करीब आ जाती है

मेरी आँखों में बसी है तू
पर रोने से भी कहां निकल पाती है
जितनी नफरत करना चाहता हूँ तुझसे
उतनी मोहब्बत होती जाती है

मुझे क्यों लगता है कि 
तू मुझे अब भी याद करती है
तेरा नाम लेता हूँ तो 
मेरी हिचकियाँ बंद हो जाती है

©साहेब

मैं साँसों को थामे रखता हूँ तू रगों में बहती जाती है जितना दूर जाना चाहता हूँ तू उतनी ही करीब आ जाती है मेरी आँखों में बसी है तू पर रोने से भी कहां निकल पाती है जितनी नफरत करना चाहता हूँ तुझसे उतनी मोहब्बत होती जाती है मुझे क्यों लगता है कि तू मुझे अब भी याद करती है तेरा नाम लेता हूँ तो मेरी हिचकियाँ बंद हो जाती है ©साहेब

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