बीते सावन कई , मगर वो लौटके ना आये। झुल तो आज भी पड़ती है, मगर हमें कौन झुलाये। इस जिस्म को तो, अपना कहने वाले बोहत है नोहरा, इस दर्द को कौन अपनाये।.
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