मैं अगर तुमसे कह ना पाऊं,
अपने मन की बात 
तुम समझ
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मैं अगर तुमसे कह ना पाऊं, अपने मन की बात तुम समझ लेना मेरे मौन से, मेरी आँखों से हर उस बात को जैसे समझ लेता है.. कोई माह (अक्टूबर ) उससे मिलने आये फूलों (पारिजात ) का त्याग और समर्पण.. और मैं तुम्हे खड़ी मिलूंगी प्राजक़्ता सी प्रत्येक वर्ष के अंत तक ये मेरा वादा है तुमसे... नंदिनी... ©Nandini..

#कविता  मैं अगर तुमसे कह ना पाऊं,
अपने मन की बात 
तुम समझ लेना मेरे मौन से,
मेरी आँखों से  हर उस बात को 
जैसे समझ लेता है..
कोई माह (अक्टूबर )
उससे मिलने आये फूलों (पारिजात )
का त्याग और समर्पण..
और मैं तुम्हे खड़ी मिलूंगी प्राजक़्ता सी 
 प्रत्येक वर्ष के अंत तक 
ये मेरा वादा है तुमसे...
नंदिनी...

©Nandini..

मैं अगर तुमसे कह ना पाऊं, अपने मन की बात तुम समझ लेना मेरे मौन से, मेरी आँखों से हर उस बात को जैसे समझ लेता है.. कोई माह (अक्टूबर ) उससे मिलने आये फूलों (पारिजात ) का त्याग और समर्पण.. और मैं तुम्हे खड़ी मिलूंगी प्राजक़्ता सी प्रत्येक वर्ष के अंत तक ये मेरा वादा है तुमसे... नंदिनी... ©Nandini..

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