ख़्वाबों को लोरियाँ सुना सुला गई हूँ मैं कितने दफ़ा तुझे ऐ वक़्त भुला गई हूँ मैं मुझसे मिले कभी मेरे वजूद का सफ़र पूछ भी तो लूँ कहाँ तक आ गई हूँ मैं जो आग है ज़ह.
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