कहीं ना कहीं कर्मों का डर है ! नहीं तो गंगा पर इतनी भीड़ क्यों है? जो कर्म को समझता है उसे धर्म को समझने की जरुरत ही नहीं.. पाप शरीर नहीं करता विचार करते है.
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