"समंदर की लहरों पर मिल्कियत है अपनी,
दरिया में कागज़ की कश्ती चलाने वालों को इसका इल्म क्या,
इक मुकम्मल सा ख्वाब हैं हम,
चंद झपकियों में अपनी रात ज़ाया करने वालों को इसका इल्म क्या,
रूहानी सी कुछ नज़्में और पाक सी कुछ गज़लें,
अपना तो तखल्लुस ही यही है,
कुछ आड़े तिरछे अल्फाज़ों को शेर कहने वाले,
इन्हें हमारी शायराना मोहब्बत का इल्म क्या......
लिखते हैं दिल की कलम से हम
इन्हे कलम के जज़्बातों की तादबीर का इल्म क्या..
लाते हैं मुस्कान आफत-ए-जां के रुख पर
इन्हे खुशी और गम के फर्क का इल्म क्या......
हम तो तालीफ भी करते हैं दिल से
ईन्हे लिखावट के अफसून का इल्म क्या,
यूं तो हम बाहम हैं आपनी ही दुनिया में,
इन्हे इश्क की बालीदगी का इल्म क्या....! "
©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!
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