मुकम्मल दो ही दानों पर ये तस्बीह ए मोहब्बत है जो आए तीसरा दाना ये डोरी टूट जाती है मुतय्यन वक्त होता है मोहब्बत की नमाज़ों का अदा जिनकी निकल जाए कज़ा भी छूट जात.
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