मुकम्मल दो ही दानों पर ये तस्बीह ए मोहब्बत है
जो आए तीसरा दाना ये डोरी टूट जाती है
मुतय्यन वक्त होता है मोहब्बत की नमाज़ों का
अदा जिनकी निकल जाए कज़ा भी छूट जाती है
मोहब्बत की नमाज़ों में ईमामत एक को सौंपे
इसे तकने उसे तकने से नियत टूट जाती है
मोहब्बत दिल का सौदा है जो है तौहिद पर क़ायम
नज़र के शिर्क वालों से.... मोहब्बत रूठ जाती है....
©Faheem Rahi Noorpuri