इस समाज में व्याप्त सब जगह ये कैसी लाचारी है भूख दर-बदर भटक रही खामोश हुई किलकारी है नंगा बदन ढांकने को उनको परिधान नहीं मिलते बेशकीमती वस्त्र लपेटे पुतले यह.
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