Rashmi rati

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Poetess and writer

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#election_results #शायरी  White अफवाह ए  बाजार को  ना हवा दी जाए
जो हकीक़त है वो सबको दिखा दी जाए 
हर कोई नहीं है यहाँ जमूरा उसका 
ये बात उस मदारी को बता दी जाए

©Rashmi rati

नामर्दों की भीड़ है मुर्दा समाज है निष्ठुर हृदय संवेदना का मोहताज है हैवानियत को देख सुन हर नजर सवालिया है चुप है जो अब तक भी वो मानसिक दिवालिया है नोच रहे थे गिद्ध उन्हें गीदड़ों के सामने निकलकर आया नहीं जिस्म कोई ढांकने भारतीयों का सिर क्यूँ शर्म से झुका नहीं पूछो ये सिलसिला क्यूँ अंत तक रुका नहीं कैसे तुमको नींद आई और कैसे तुम रह पाए इतनी हिंसा इतनी जुल्मत आखिर कैसे सह पाए ये कहाँ का सुशासन है और कैसी सुरक्षा है अब तो यकीं हो चला कि नपुंसक व्यवस्था है इन आँखों में लहू है और जहन में उबाल है उस 56 इंची सीने से मेरा इक सवाल है घर जलता देखकर क्यूँ एक पल ठहरे नहीं तुम चुल्लू भर पानी में क्यूँ डूब के मरे नहीं ©Rashmi rati

#मणिपुर  नामर्दों की  भीड़  है  मुर्दा समाज है
निष्ठुर हृदय संवेदना का मोहताज है

हैवानियत  को  देख  सुन  हर  नजर सवालिया है
चुप है जो अब तक भी वो मानसिक दिवालिया है 

नोच रहे थे गिद्ध उन्हें गीदड़ों के सामने
निकलकर आया नहीं जिस्म कोई ढांकने

भारतीयों का सिर क्यूँ शर्म से झुका नहीं
पूछो ये सिलसिला क्यूँ अंत तक रुका नहीं 

कैसे तुमको  नींद  आई और कैसे तुम रह  पाए 
इतनी हिंसा इतनी जुल्मत आखिर कैसे सह पाए 

ये कहाँ का सुशासन है और कैसी सुरक्षा है
अब तो यकीं हो चला कि नपुंसक व्यवस्था है

इन आँखों में लहू है और जहन में उबाल है
उस  56  इंची  सीने  से  मेरा  इक सवाल है

घर जलता देखकर क्यूँ एक पल ठहरे नहीं 
तुम चुल्लू भर पानी में  क्यूँ डूब के मरे  नहीं

©Rashmi rati

rashmi rati ©Rashmi rati

 rashmi rati

©Rashmi rati

# manipur # narendra modi # politics # manipur news # poem #✍️✍️

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इस समाज में व्याप्त सब जगह ये कैसी लाचारी है भूख दर-बदर भटक रही खामोश हुई किलकारी है नंगा बदन ढांकने को उनको परिधान नहीं मिलते बेशकीमती वस्त्र लपेटे पुतले यहाँ खूब दिखते गली- गली चौराहों पर हम ऐसे दृश्य देखते हैं दूर से ही उन मासूमों की रोचक तस्वीर खींचते हैं पर क्यूँ हम पास नहीं जाते उनका हाल जानने को है उन्हें जरूरत रोटी की क्यूँ तैयार नहीं मानने को क्या इतने संवेदनाहीन हुए सब बस खुद से ही मतलब है अपनी खुदगर्जी का ख्याल रहे बाकी सब बेमतलब है हम दौड़ रहे दिखावे में अपनी शान दिखाने को जिन्दगियाँ मजबूर हुईं यहाँ पैसों मे बिक जाने को जमींदार कहाने को मन्दिर में दान कराते हैं परिसर के बाहर ही बच्चे खड़े हाथ फैलाते हैं पत्थर की मूरत पे सज्जन सोने का मुकुट चढ़ाते हैं असहाय कहीं टुकडों की खातिर तड़क-तड़प मर जाते हैं ईश्वर का इन्हें भक्त कहूँ या मानवता का शत्रू इनकी नेकशीलता का कब तक व्याख्यान करूं जब भी कोई भूखों मर कर अपनी जान गंवाता है इस सत्ता का हर एक नेता बस सहानुभूति दिखलाता है इस हालत को देख-देखकर मेरा दिल भर आता है ये मुफ़लिसी और अमीरी का ख्याल मुझे तड़पाता है ये विचार ही कौंध -कौंध कर जेहन घायल कर जाते हैं हाय विडम्बना कैसी ये हम कुछ भी ना कर पाते हैं ©Rashmi rati

 इस समाज में व्याप्त सब जगह ये कैसी लाचारी है 
भूख दर-बदर भटक रही खामोश हुई किलकारी है 

नंगा बदन ढांकने को उनको परिधान नहीं मिलते
बेशकीमती वस्त्र लपेटे पुतले यहाँ खूब दिखते

गली- गली चौराहों पर हम ऐसे दृश्य देखते हैं
दूर से ही उन मासूमों की रोचक तस्वीर खींचते हैं 

पर क्यूँ हम पास नहीं जाते उनका हाल जानने को
 है उन्हें जरूरत रोटी की क्यूँ  तैयार नहीं मानने को

क्या इतने संवेदनाहीन हुए सब बस खुद से ही मतलब है
अपनी खुदगर्जी का  ख्याल रहे बाकी सब बेमतलब है

हम दौड़ रहे दिखावे में अपनी शान दिखाने को
जिन्दगियाँ मजबूर हुईं यहाँ पैसों मे बिक जाने को

जमींदार कहाने को  मन्दिर में दान कराते हैं 
परिसर के बाहर ही बच्चे खड़े हाथ फैलाते हैं 

पत्थर की मूरत पे सज्जन सोने का मुकुट चढ़ाते हैं 
असहाय कहीं टुकडों की खातिर तड़क-तड़प मर जाते हैं 

ईश्वर का इन्हें भक्त कहूँ या मानवता का शत्रू
इनकी  नेकशीलता का कब तक व्याख्यान करूं 

जब भी कोई  भूखों मर कर अपनी जान गंवाता है
इस सत्ता का हर एक नेता बस सहानुभूति दिखलाता है

इस हालत को देख-देखकर मेरा दिल भर आता है
ये मुफ़लिसी और अमीरी का ख्याल मुझे तड़पाता है

ये विचार ही कौंध -कौंध कर जेहन घायल कर जाते हैं 
हाय  विडम्बना कैसी ये हम कुछ  भी ना कर पाते हैं

©Rashmi rati

# poem # poetry

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# ghazal # poetry # sad ghazal ✍️✍️✍️🥀🥀

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#शायरी

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